मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने पारिवारिक अदालत का फैसला पलटा, पत्नी को ₹15,000 भरण-पोषण देने का आदेश

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By Editorial Team

इंदौर: पारिवारिक न्यायालय के आदेश को रद्द करते हुए, मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ ने एक व्यक्ति को अपनी पत्नी को रोजगार सहायता के रूप में हर महीने ₹15,000 देने का आदेश दिया है। याचिकाकर्ता चिकित्सा की पढ़ाई कर रही है। 

न्यायमूर्ति गजेन्द्र सिंह ने यह आदेश इस आधार पर पारित किया कि पत्नी के पास अलग रहने के पर्याप्त कारण हैं और उच्च शिक्षा के दौरान उसे आर्थिक सहायता की आवश्यकता है।

indore high court

याचिकाकर्ता वैशाली सोनार ने अपने पति सुनील सोनार पर क्रूरता और दहेज उत्पीड़न के आरोप लगाते हुए, दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की याचिका दायर की थी। सुनील सोनार ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन – ONGC में कार्यरत हैं और ₹74,000 प्रति माह कमाते हैं

रतलाम की पारिवारिक अदालत ने दिसंबर 2024 में उनकी याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि वैशाली एक योग्य डॉक्टर हैं और स्वयं कमाने में सक्षम हैं।

हालांकि, हाई कोर्ट ने इस तर्क को यह कहते हुए अस्वीकार किया कि वैशाली इस समय एमडी (होम्योपैथी) की पढ़ाई कर रही हैं और किसी स्थायी नौकरी में नहीं हैं। उन्होंने केवल कोविड-19 महामारी के दौरान अस्थायी रूप से “आयुष चिकित्सक” के रूप में काम किया था और इस दौरान अल्पकालिक मानदेय प्राप्त किया था।

न्यायालय ने कहा — “ट्रायल कोर्ट का यह निष्कर्ष कि पत्नी बिना पर्याप्त कारण के अलग रह रही है, सबूतों के विपरीत है।”

न्यायमूर्ति सिंह ने अपने फैसले में यह भी कहा कि विवाह किसी महिला की व्यक्तिगत पहचान या आत्म-विकास के अधिकार को समाप्त नहीं करता।
उन्होंने टिप्पणी की — “यदि पति का कर्तव्य अपने माता-पिता के प्रति है, तो उसका दायित्व अपनी पत्नी का भी सहयोग करना है, ताकि वह अपनी पढ़ाई पूरी कर सके, अपनी क्षमता बढ़ा सके और सशक्त बन सके।”
उन्होंने आगे कहा कि विवाह में समानता का अर्थ यह नहीं है कि “एक व्यक्ति का विकास हो और दूसरे पर सीमाएं लगाई जाएं।”

अदालत ने आदेश दिया कि ₹15,000 प्रति माह का भरण-पोषण भत्ता उस तारीख से देय होगा जब मूल आवेदन दायर किया गया था, हालांकि उस एक वर्ष की अवधि का, जब पत्नी को मानदेय मिला था, उसमें भरण-पोषण लागू नहीं होगा।
यदि पहले से कोई अंतरिम भरण-पोषण राशि दी गई है, तो उसे इसमें समायोजित किया जाएगा।

हाई कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह आदेश भविष्य में संशोधित किया जा सकता है। यदि परिस्थितियों में बदलाव होता है, जैसे की पत्नी को नौकरी मिल जाना या फिर दंपति के बीच सुलह होना। यह संशोधन धारा 127 CrPC (अब “भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023” की धारा 146) के तहत किया जा सकेगा।

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