मूवी रिव्यु: ‘ग्राउंड जीरो’ परफेक्ट नहीं है, लेकिन फिर भी अच्छी लगती है

कश्मीर पर एजेंडा फिल्में देखते-देखते थकान होने लगी है। ‘ग्राउंड जीरो’ परफेक्ट नहीं है, लेकिन फिर भी अच्छी लगती है, क्योंकि यह किसी भी एजेंडे से दूर है। घाटी की समस्या को तरीके से पेश करती है, सोचने पर मजबूर करती है। आज के माहौल में तो ऐसे ‘डोज’ की सख्त जरूरत थी, जहां कुछ लोग हर कश्मीरी को गुनहगार साबित करने पर आमादा हैं।

बीएसएफ के ‘ऑपरेशन गाजी’ पर पूरा फोकस है। फिल्म का टोन इस बात से सेट होता है… ‘क्या सिर्फ कश्मीर की जमीन हमारी है या वहां के लोग भी?’ यह सवाल आज भी मौजूद है, जहां कश्मीरी पर मिलीभगत के आरोप लग रहे हैं और देश के अन्य हिस्सों में कश्मीरी छात्रों को धमकियां मिल रही हैं और हमले हो रहे हैं।

‘ग्राउंड जीरो’ के साथ अच्छा यह है कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ और ‘आर्टिकल 370’ से बेहद दूर और ‘शेरशाह’ के करीब है। इस बायोपिक में देशभक्ति और स्थानीय लोगों के लिए हलकी, लेकिन चिंता साफ दिखती है। यह सधी थ्रिलर है, जो पहले ही फ्रेम से बांध लेती है। कुछ सीन इतने भावुक हैं कि आंसू ला सकते हैं। ज्यादा की उम्मीद मत कीजिएगा !

आधे घंटे में यह घाटी में सेट अन्य हिंदी एक्शन फिल्मों जैसी लगती है, लेकिन पाकिस्तान को सीन से गायब रखा है। बीएसएफ पर फोकस करने वाली यह फिल्म आंतरिक सुरक्षा के सवालों से जूझती है। घर-घर तलाशी, जवाबी हमले, विरोध पर भीड़ से जूझते वक्त अराजक माहौल, भागते युवक की गर्दन में चेतावनी की गोली लगना… सब असरदार है। तेजस प्रभा विजय देवस्कर के निर्देशन और लेखक संचित गुप्ता प्रियदर्शी श्रीवास्तव यह असर पैदा करते हैं। फरहान अख्तर भले ही प्रोड्यूसर हों, लेकिन हलकी फिल्म अपने बैनर पर मंजूर नहीं करते हैं।

यह जरूर है कि कश्मीर को कम फिल्माया है। कुछ फ्रेम्स हैं, जो दूसरी फिल्मों से उठाए लगते हैं। संवाद काफी खराब है। एक आतंकी का कहना ‘आज मौका भी है, दस्तूर भी घिसा- पिटा है और फरहान के अब्बा के जमाने का लगता है। ‘पहरेदारी बहुत हो गई, अब प्रहार

होगा’ जैसा संवाद देर से आता है और केवल जॉनर को खुश करने वाला है।

बीएसएफ सिक्ख, मलयाली, बंगाली, राजस्थानी हैं… लेकिन दुबे को छोड़कर कोई किरदार उभरकर नहीं आता। कश्मीरी सच्चाई से जुड़े मुश्किल सवाल सिर्फ अधिकारियों के बीच, अकेले में उठाए जाते हैं। यहां अचानक हमले खूब हैं।

सबसे बड़ा अचम्भा इमरान हाशमी का नैतिक योद्धा होना। यह एक्टर चालाक प्रेमी और ठग का है, लेकिन यहां मजबूत और गंभीर इंसान है। हाशमी ग्रे शेड्स में चमकते हैं। अभय धीरज सिंह, ललित प्रभाकर और दीपक परमेश ने साथी के रोल में असर छोड़ा है। साई तम्हणकर और जोया हुसैन को कम ही जगह मिली। फिल्म को माहौल का फायदा मिलेगा, मिलना भी चाहिए। ईमानदार फिल्म है, कमाई होना ही चाहिए !

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मैंने देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर से जनसंचार एवं पत्रकारिता में स्नातक की पढ़ाई पूरी की है। मैं पत्रकारिता में आने वाले समय में अच्छे प्रदर्शन और कार्य अनुभव की आशा कर रही हूं। मैंने अपने जीवन में काम करते हुए देश के निचले स्तर को गहराई से जाना है। जिसके चलते मैं एक सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार बनने की इच्छा रखती हूं।

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